Last modified on 7 अक्टूबर 2019, at 15:37

कविता - 13 / योगेश शर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:37, 7 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेश शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक दुकान ऐसी है जिसमें शहर बिकतें हैं
मैं एक ऐसी दुकान से गुजरा हूँ
मैंने कई शहर खरीदे हैं।

एक शहर से गुजरते हुए मैंने जाना
तंग गलियों और
ऊंचे घरों की कमजोर नींवों के नीचे,
बसता है एक शहर, चलायमान।

मैं हमेशा एक शहर में रहा,
मैंने कभी रेगिस्तान नही देखा था,
मैंने कभी समुद्र नही देखा था,
मैंने न कभी कोई पठार देखा था
न गहरी भूमि...
बस समतल पठार देखा था
तुझसे मिलने के बाद इनसे परिचित हुआ।

तुझे श्रृंगार पसन्द था
मुझे सादगी पसन्द है।
मेरे यहाँ गेंदे के फूल होते हैं
गेंदे के फूल बालों में नही लगते।

मैं एक ऐसा कवि हूँ जो छिपाकर कविताएँ लिखता है
मैं भला कहाँ तेरी आँखों में रह पाता।