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जन्नत से रिपोर्ट / ज़्बीग्न्येव हेर्बेर्त / विनोद दास

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जन्नत में हर सप्ताह तीस घण्टे काम के लिए मुकर्रर हैं
मजूरी ज़्यादा है, क़ीमतें लगातार कम होती जाती हैं
जिस्मानी काम थकाऊ नहीं है (गुरुत्वाकर्षण कम होने के कारण )
लकड़ी चीरना टाइपिंग करने से ज्यादा मेहनत का काम नहीं है
सामाजिक ढाँचे में ठहराव है और हुक़्मरान होशियार हैं
सच कहूँ तो किसी भी देश के आदमी से बेहतर
जन्नत में है आदमी

सबसे पहले तो इसे जगमग गोल घेरे में गिरजाघर की गायक मण्डली
और हद दर्जे की अमूर्तता से अलग होना चाहिए था
हालाँकि वे आत्मा को शरीर से ठीक-ठीक अलग नहीं कर पाए थे
लिहाज़ा थोड़ी-सी चर्बी और सूत भर मांसपेशी
कम करने यहाँ आए होंगे

फिर परम तत्त्व के अंश में माटी के अंश के मिलने के नतीज़ों को
भुगतना लाज़िमी था.
मृत्यु के दर्शन से यह एक बिलकुल नया मोड़ था
केवल जॉन के पास पूर्वदृष्टि थी : तुम्हारा पुनर्जन्म दूसरे
शरीर में होगा

तमाम लोग ईश्वर नहीं देख पाते
वह सिर्फ उनके लिए हैं जो सौ फ़ीसदी वायवीय हैं
बाकी लोग चमत्कारों और बाढ़ों की ख़बरें सुनते हैं
किसी दिन सब ईश्वर को देखेंगें
मगर यह कब होगा
कोई नहीं जानता

यूँ अब हर शनिवार को दोपहर में
जब सायरन की मीठी आवाज़ गूँजती है
और वे कारख़ानों से सर्वहारा के जन्नत में बुडबक से जाते हैं
अपने पँखों को काँख में दबाकर
वायलिन की तरह ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास