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हाथ में रख इस ह्रदय को / चन्द्रगत भारती
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आज तुम मुझको बुलाओ
और मैं आऊँ प्रिये !
हाथ में रख इस ह्रदय को
साथ मैं लाऊं प्रिये !
ये हवायें, वादियाँ ये
छेड़ती हैं तान जैसे !
फूल,कलियाँ और पंछी
गा रहे सब गान जैसे !
यदि सुनो तुम मन लगाकर
जिन्दगी का गीत कोई
आज मैं गाऊँ प्रिये !
पाँव में रच दूं महावर
मैं तुम्हारे, तुम कहो तो !
तोड़ मै लाऊॅ गगन से
सब सितारे, तुम कहो तो !
तुम कहो तो अंक भरकर
लाज अधरों पर तुम्हारे
फिर सजाऊँ मैं प्रिये !
मोह लेता है मुझे ये
केश का खुलना,बिखरना !
खनखनाना चूड़ियों का
और ये सजना संवरना !
यदि न मानों तुम बुरा तो
कर दूं अर्पित स्वयं को फिर
मैं तुम्हें पाऊँ प्रिये!