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हवायें ला रहीं जैसे / चन्द्रगत भारती
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कभी मेंहदी रचे हाथों
को' धोया था जहाँ तुमने
वहीं से आज भी खुशबू
हवायें ला रहीं जैसे।
मुझे सब याद हैं बातें
तुम्हें क्या याद है अब भी ?
चलो फिर से वहीं बैठें
मिले फुरसत तुम्हें जब भी !
लिखे थे गीत जो तुम पर
फिजायें गा रहीं जैसे ।
हमेशा याद आती हैं
हुईं जो प्यार की बातें !
कभी इन्कार की बातें
कभी इकरार की बातें !
मुझे अक्सर लगा साथी
सदायें आ रहीं जैसे।
लगा मुझको अभी ऐसा
तुम्हारे साथ बैठा हूं
तुम्हारे नर्म क॓धों पर
रखे मैं हाथ बैठा हूं
तुम्हारी जुल्फ बिखरी है
घटायें छा रहीं जैसे।
बहुत मजबूर हो तुम भी
वहां से दूर हूं मैं भी
कहीं पर खो गयी हो तुम
टूटकर चूर हूं मैं भी !
तुम्हारे पास लेकर फिर
दिशायें जा रहीं जैसे।