भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिखाया हमे दर्द में मुस्कराना / चन्द्रगत भारती
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:48, 17 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रगत भारती |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बहुत चाहती हैं पीड़ायें हमको
सिखाया हमें दर्द में मुस्कराना
बहुत फूल महके इन्ही डालियो पर
जिन्हें देख बहके इन्हीं डालियो पर
गिराया नजर से बहारों ने हमको
कोशिश थी उनकी हमें बस रुलाना।
खयालो मे था तिश्नगी जान लेगी
सोचा था महबूब ये मान लेगी
बरसात सावन की झुलसाने आई
मेरे दर्दे दिल को किसी ने न जाना
पागल दिवाना बनाया है उसने
मेरे घाव रिसकर लगे हैं सिसकने
विचलित न कर पाई ये दुनिया हमको
चाहत थी उसकी हमें बस गिराना।