भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदला कुछ भी नही / प्रतिमा त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:17, 17 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिमा त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बदला कुछ भी नहीं एक तेरे जाने के बाद
सारे मौसम अपने वक्त पे आते-जाते हैं
धूप वैसे ही चढती है उतरती हैं दीवारों पे
छाँव भी अक्सर थक के कहीं बैठ जाती है
गुलाब अब भी खिलते हैं उसी तरह
वैसे ही महकता है मोंगरा .. अब भी
पीर की मजार पे उम्मीद की चादरें चढ़ती हैं
आज भी वो फकीर झूठी दुआएं देता है !