शाम,
सारे दिन की भरपाई है
बोझिल मन की मुट्ठीभर कमाई है !
नीली गोद से अपनी शाख पे
लौटते पंछियों की चहचहाहट है !
सफ़र की थकन मिटानेवाली
कुछ पल में आने वाली रात की
सुगबुगाहट है .. शाम !
शाम,
सारे दिन की भरपाई है
बोझिल मन की मुट्ठीभर कमाई है !
नीली गोद से अपनी शाख पे
लौटते पंछियों की चहचहाहट है !
सफ़र की थकन मिटानेवाली
कुछ पल में आने वाली रात की
सुगबुगाहट है .. शाम !