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पिछड़े हुए राष्ट्र से / महेन्द्र भटनागर

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पिछडे हुए हो तुम
बढ़ो, आगे बढ़ो
जब बढ़ रहा संसार !
नव विश्वास,
नूतन ध्येय संस्कृति का,
अमर वरदान युग का
मुक्ति का, स्वातन्त्र्य का,
दृढ शक्ति का,
उत्सर्ग का !
नूतन प्रगति-पथ पर
सबल रथ
तीव्र गति से राह समतल कर रहे हैं,
पंथ को अवरुद्ध करते
दीर्घतम पाषाण औ’
फिसलन भरी भारी शिलाएँ,
घोर प्रतिद्वन्द्वी हवाएँ
दृप्त चरणों से दबाते जा रहे हैं !
टैंक जैसी
विश्व की बढ़ती हुईं
करती हुईं मुठभेड़ अभिनव शक्तियाँ
जब बढ़ रही हैं
गढ़ रही हैं
गान गा स्वातन्त्र्य का;
पद-चिन्ह उनके देखकर
इतिहास के विद्रोह पृष्ठों में,
बढ़ो, तुम भी बढ़ो !
परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर
अज्ञानता की रूढ़ियों को तोड़कर
प्राचीन गौरव-गान के
बंदी उठो, बंदी उठो !
तुम भी प्रगतिमय शीघ्र होकर
विश्व के मुख पर दिखो,
देदीप्य बन नक्षत्र-से चमको !
सजग हो
उठ पड़ो ओ, राष्ट्र सोये,
आज तो हुंकार कर,
ललकार कर !

युग-क्षितिज पर जब
रक्त जैसी लाल आभा छा रही है,
चेतना जीवन
प्रभाती चिन्ह स्वर्णिम रश्मियों के
आज पृथ्वी पर पड़े हैं,
देख जिनको विश्व सारा जग गया है
और तुम सो ही रहे हो ?
जग उठो तुम, जग उठो
जब जग गया संसार !
हो पिछड़े हुए
आगे बढ़ो, आगे बढ़ो
जब बढ़ गया संसार !