भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कौन से सपने / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:27, 20 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= टूटती शृंखलाएँ / महेन्द्र भट...)
कौन से सपने
लगे अपने
निरन्तर
साधना साकार करने जो
हृदय तन से लगे तपने ?
अरे मन !
बोल तो रे
कौन-से सपने ?
भर रहे हैं शक्ति ऐसी —
दे रही जो
प्रेरणा, गति, चेतना,
घन फट रहे
औ’ उड़ रही है वेदना !
उल्लास की अविरल उमंगें
उर-समुन्दर की तरंगें
उठ रही हैं, गिर रही हैं
और मुखड़े पर
नयी ही आज
रेखाएँ दिखाई दे रही हैं !
कौन-सा सुख-भाव वर है
सुघर, सुन्दर, अमर जो श्रेष्ठतर है,
हो गया हलका
कि जिससे बोझ जीवन का
युगों की कामना का चित्र भी रंगीन
अन्तर-दाह शीतल लीन ?