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मुक्त हो गये हम / उर्मिल सत्यभूषण

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जानते थे अगर-
प्रेममय जीवन
की आयु है छोटी सी-
तो जी लेते भरपूर
छोटी सी आयु को।
पी लेते घूंट घूंट
प्रेम का मधुरस
पाये न तोड़ वर्जनाओं
की सांकल तुम
हाय! जिये घुट-घुट के
होंठो को सिये।
पिये न दो घूंट
खुशियों के जाम
पूरी तरह इसीलिये
मर भी तो पाये न
प्यास चाहतों की
लिये-लिये आंखों में
टूटे छितरे तिनके
अधूरे सपनों के
पीछे बिखर गये
अटके रहे प्राण
हाय! फंसे-फंसे
मोह जाल में भटके कहाँ-कहाँ?
छाया की न्याईं
एहसासों की दुनिया में
लटके संग-संग
बहुत हो गया अब
तोड़ो ये कारा।
मोहक संबंधों की
नेहिल अनुबंधों की
भोगी है बहुत सजा
बड़भागी ने मेरे-
मेरे हतभागी ने
जाओ! जाओ पंछी
उड़ जाओ मुक्त गगन में
ज्योति में ज्योत बनो तुम
मुक्त करती हूँ तुमको
क्षमाशील होकर
होती हूँ स्वयं मैं
मुक्त...।