Last modified on 21 अक्टूबर 2019, at 00:18

आ गई फिर याद / उर्मिल सत्यभूषण

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:18, 21 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बहुत दिन के बाद
आ गई फिर याद
जो फरीदाबाद।
जिंदगी का एक हिस्सा
कर गये आबाद
बंधनों के बीच कुछ
एहसास थे आज़ाद
संघर्ष तो कमतर न थे
लेकिन थे हम दिलशाद
दोस्तों का दल था
सुख-दुःख बांटता था
धूप देकर घने काले
बादलों को छांटता था
जब घिरे अवसाद से
वो दे गये आह्लाद
स्वर्ण सरसिज
खिलखिलाते धूप से चेहरे
झिलमिलाये, अब घुलेंगे
शीत के कुहरे
हाँ दिनकर सुन रहा है
दिवस की फरियाद
आ गये तुम याद।