भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़दीक वो आ गया है / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:26, 21 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खुद खुद से मिलना जरूरी हुआ है
मेरे दर्द की यही इक दवा है
तू मुझको मुझसे मिला दे, दुआ है
दर्पण दिखा दे, यही इल्तज़ा है।
रिश्तों को जीना है जिसने सिखाया
सीखा है उससे ही, जीना कला है
सम्मान अपना जो करने लगे हम
गै़रों ने बढ़कर आदर दिया है
सागर किनारे रहे लहरें गिनते
मंथन किया तब ही मोती मिला है
खुद से हुये रूबरू जो गा है
हमने खुदी में खुदा पा लिया है
बहुत दूर लगता रह था जो हमसे
हैरां हूँ नजदीक वो आ गया है।