भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निष्ठुर आली / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 22 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
निष्ठुर आली किस मस्ती में
किन सपनों में भूल रही
औरों को पीड़ा दे दे कर
सुख का झूला झूल रही
जाकर पूछो उन फूलों से
जो तुमने कल तोड़े थे
गंध उड़ गई, झड़ी पत्तियां
छिलछिल छाले फोड़े थे
अरी बाबरी, भूल तुम्हारी
चुमती बनकर शूल रही
माना जिं़दगी की राह बीहड़
लेकिनएक अकेली हो क्या?
अनजानी पहचाने गूंथलो
पंथ सरल बन जायेगा
चट्टानों से टकराये जो
राह उसके अनुकूल रही
तेरे दुःख क्या दुःख हैं पगली
यह दुनिया कितना सहती है
चौतरफा दुःख दैन्य गरीबी है
पीड़ा नदियां बहती है
तू क्यों केवल अपने मन के
सुख-दुःख में मशगूल रही?