Last modified on 22 अक्टूबर 2019, at 22:53

कुछ स्वर्णिम लम्हें पाये हैं / उर्मिल सत्यभूषण

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:53, 22 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ स्वर्णिम लम्हें पाये हैं
उनके रंग में रंग आये हैं

कुछ ना पाया कहने वाले
ना शुक्रे ही कहलाये हैं

पंकज जैसे उर वाले हम
कीचड़ कमल खिला आये हैं

दर्द मिला जो मीठा-मीठा
उसको दवा बना लाये हैं

अश्कों का जल पी-पीकर भी
तश्नालब ही लौट आये हैं

दहक रहे अनुरागी मन ने
शीतल नग़मे ही गाये हैं

दुनिया से चोटें खा-खा कर
‘उर्मिल’ के लब मुस्काये हैं।