भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आंगन बदबूदार हुआ है / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:02, 22 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आंगन बदबूदार हुआ है
सारा घर बीमार हुआ है
मानवता की लाश बिछी है
क़त्ल सरे बाजार हुआ है
पाला मार गया फ़सलों को
सारा श्रम बेकार हुआ है
पांचाली के बाल खुले हैं
चीर हरण हर बार हुआ है
स्नेह संधि के बीच दरारें
हर रिश्ता व्यापार हुआ है
मुर्झाई सपनों की फ़सलें
अब यह जीवन भार हुआ है
चीलों, गिद्धों की दावत को
भीषण नर संहार हुआ है
अंधी नगरी अंधा राजा
चौपट यह दरबार हुआ है
उर्मिल आग लगा दे इसमें
कूड़े का अम्बार हुआ है।