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आज गगन पर छाये मेघा / उर्मिल सत्यभूषण

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आज गगन पर छाये मेघा
पी बनकर हैं आये मेघा

प्यासी धरती गगन निहारे
कब बरसे, हर्षाये मेघा

चपला कर निज कर लेकर
जीवन की लौ लाये मेघा

नयन नयन करके रतनारे
अंग रंग बिखराये मेघा

अधरों पर धर अधर रसीले
अमृत रस बरसाये मेघा

चरणों पर धर चरण रूपहले
प्राण में घुलता जाये मेघा

रसवंती धरणी हो उर्मिल
उमड़ घुमड़ कर धाये मेघा।