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क्यो एकरा दियौक नहि टोक / बाबा बैद्यनाथ झा
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क्यो एकरा दियौक नहि टोक
ई अछि बहिरा ओ अछि बौक
ई नाचै अछि अपने तालेँ
चढ़लापर कखनो कऽ झोंक
अपनहि टा हित ई बूझै अछि
अपनहि दुनियाँ अपनहि लोक
बेचि रहल ईमान-धरम ई
कखनो खुदरा कखनो थोक
चूसय ई भारतमाता केँ
ज्यों शोणितकेँ चूसय जोंक
सत्य-अहिंसा केर प्रेमीकेँ
देखा रहल बन्दूकक नोक
देस रहय अथवा ई डूबय
एकरा हर्ष ने आ किछु शोक
भऽ निराश ताकै छथि ‘बाबा’
भेटय नहि किन्नहु आलोक