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सरसी सजती ताल / प्रेमलता त्रिपाठी

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छोटे छोटे भरे जलाशय, सरसी सजती ताल।
खिल जाते जब सुमन सरोवर, मन होता वाचाल।

शोभा अंतस लेकर अपने, पंकिल साने गैल,
छिपी हुई दीर्घा में उसके, अंकुर जैसे बाल।

देर नहीं प्रस्फुटन हो पड़े, खिलने को बेचैन,
जीवन की सौगातें लेकर, सुमन सजे निज थाल।

स्थूल तारिका भर दे अंचल, रिक्त नहीं है शून्य,
गगन भेद उल्का बन गिरती, आ जाये भूचाल।

स्रोत कहाँ से फूटे निर्मल, होते हम अनजान,
प्रेम सरस शीतल धारा ले, नदियाँ करे धमाल।