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मन साहस कर / प्रेमलता त्रिपाठी
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भाग्य भरोसे, रहना क्यों मन, साहस कर।
सुंदर निश्चय, लेकर अविचल, मानस कर।
बुला रही है, कर्म बीथिका, बढ़ता चल,
अंतस जलती, ज्योति शिखा मत, मावस कर।
यजन धूम से, महके जीवन, समिधा बन,
पावन करनी, जन्म साधना, पारस कर।
राही बनना, उसी मार्ग का, कंटक चुन,
बाधाओं से, डरना क्या मन, ढाँढस कर।
कटुता मन की, दूर करें फिर, विह्वल क्यों,
तार जुड़ेगें, मन वाणी को, पायस कर।
भिन्न भिन्न है, बोली भाषा, एक धरा,
शीतल वाणी, रस धारा बन, पावस कर।
राग रंग में, अब तक जीवन, व्यर्थ ढला,
लक्ष्य शिखर है, छूना मत अब, आलस कर।