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चली सिया लेकर वरदान / प्रेमलता त्रिपाठी
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चली सिया लेकर वरदान।
गौरी पूजन कर सम्मान।
सिय कर सोहे जब जयमाल,
रावण का जागा अभिमान।
जनक सभा में राम प्रभाव,
ईर्ष्या से जल उठा अजान।
कामी क्रोधी कुटिल कराल,
डूब गई फिर उसकी शान।
मन पर पड़ा कुठाराघात,
हारा फिर वह गिरा खदान।
मन के रावण करें पछाड़
गरिमा अपनी विश्व निधान।
पुण्य धरा पर धर्म अथाह,
भारत अपना देश महान।