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सावन प्रवास / प्रेमलता त्रिपाठी

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रिमझिम बरखा सावन प्रवास।
ऋतु विलक्षणाकरती विलास।

गर्वित हर्षित धरती विशाल,
तृण-तृण करते नर्तन विकास।

शिव ने तोड़ी जैसे समाधि,
मंदिर-मंदिर पूजन हुलास।

झुक झुक आएँ नीरद सघोष,
प्रणम्य शिरसा वंदन प्रयास।

उमड़े नदिया श्रंृखल अधीर,
बढ़ते प्रवाह करते हतास।

अपने कर्मों का मन प्रमाण,
कोमल निर्मल या हो खटास।

प्रेमिल बंधन यदि हो विकार,
प्रतिपल मन को करते उदास।