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क्रम जीवन का अविरल है / प्रेमलता त्रिपाठी

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सुबह सलोनी रात सुहानी, क्रम जीवन का अविरल है।
नन्हें सोपानों से सीखें, ऊँचे उठना प्रतिपल है।

जड़वत जीना मृतप्राय कहें, तन मन सम्बल कर्मठता,
वृक्ष महान है' अंकुर बनता, शाख शून्य में हलचल है।

आरोही अवरोही बनकर, सरगम जीवन साध चलें,
ऊँचे नीचे पथरीलेपथ, मिलता कभी न समतल है।

बंद न करना तृषा द्वार को, कर्म नये संधान करो,
नित्य नवल परिधानों सम जो, सजा रही मन अंचल है।

कुश कंटक की बाधा कैसी, हरित प्राण है यह धरती,
प्रेम करे स्वागत है सबका, खोल हृदय का साँकल है।