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दीप सम जलते रहें / प्रेमलता त्रिपाठी

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दीप सम जलते रहें हम।
राह सत बढ़ते रहें हम।

मन गहन चिंतन करो क्या,
कर्म अपना कर रहें हम।

एक दिन जाना सभी को
हाथ क्यों मलते रहें हम।

देह माटी का खिलौना,
मेह जल घुलते रहें हम।

सोचना माया जगत में,
क्यों हृदय छलते रहें हम।

वार कर जीवन सदा यह,
प्रेम पथ चुनते रहें हम।