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सार लेखन चाहिए / प्रेमलता त्रिपाठी

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ब्रह्म अक्षर सत्य है फिर, सार लेखन चाहिए।
अर्थ जीवन दे रहा जो, धार लेखन चाहिए।

कंठ तक मद में भरे जो, भाग्य को हैं कोसते,
प्यास तो बुझती तभी है, हार लेखन चाहिए।

आब आदर मिल सके क्या, झूठ कायर भाव से,
कर्म निष्ठा से कहन में, ज्वार लेखन चाहिए।

छू सके जो मर्म को भी, हो कथन में तीव्रता,
तीर का संधान जैसे, मार लेखन चाहिए।

प्रेम जीवन काव्य मधुरस, मान है सम्मान भी,
क्रांति हो पर भाव निर्मल, प्यार लेखन चाहिए।