भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जगाना कठिन है / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अगन देश हित जो जलाना कठिन है।
लगी हो अगन तब, बुझाना कठिन है।
तड़पता हृदय देख जिनकी शहादत,
अलख वीरता वह, जगाना कठिन है।
तिरंगा लहर ले, पुलकता हृदय जब,
सहज प्यार उसका, मिटाना कठिन है।
नहीं तोड़ सकता, प्रलोभन जिसे वह,
सहे यातना मन, लुभाना कठिन है।
सदा मातृ भू के, रहे जो दिवाने,
नमन आज उनको, भुलाना कठिन है।