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जिसने मुझे सँवारा / प्रेमलता त्रिपाठी

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ममता हृदय बढ़ेगी, सोचा नहीं विचारा।
जीवन डगर तुम्हीं हो, जिसने मुझे सँवारा।

सुख चैन छीन लेती, आँसू सदा बहाकर,
राहें बड़ी कठिन हैं, प्रभु ने मुझे उबारा।

ले जन्म इस धरापर, बीता सहज सुहावन,
बचपन मिला अनोखा, माँ ने मुझे दुलारा।

आँगन ठुमक सजाती, मनको रही लुभाती,
पितुमातु की दुलारी, नाता सुखद व प्यारा।

माँ ज्ञान दायिनी के, वरदान से सतत ही,
बढ़ती रही पिपासा, बढ़कर चरण पखारा।

मन प्राण से निबाहा, जीवन अकथ कहानी
आहूत कर चली जो, मिलता नहीं दुबारा।

सपने कभी न टूटे, मिल कर इसे सजायें,
पावन हृदय सदन को, है प्रेम ने निखारा।