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शक्ति जाना नहीं / प्रेमलता त्रिपाठी

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सरल मातृ की शक्ति जाना नहीं।
विरल तेज पहचान पाना नहीं।

सुयश मान यदि चाहते हो सदा,
विमुख माँ पिता के बिताना नहीं।

कहीं भाग्य से यदि शरण गुरु मिले,
चरण वंदना भूल जाना नहीं।

अमृत सम मिले ज्ञान वापी गहर,
स्वयं डूबने से बचाना नहीं।

हृदय में ललक सीखने की अगर
रहे वह बनी मन हटाना नहीं।

बढ़ो ज्ञान बाँटो सुधी जन कहें,
यहीं भाव मन से मिटाना नहीं।