भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तृष्णा जाती हार / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:47, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तृष्णा जाती हार।
मानस चुनता सार।

मन को करे मलीन,
लोभ करे व्यापार।

तन मन भरे उजास,
तुष्टि बने आधार।

पर्वों की सौगात,
सावन भादों क्वार।

प्यारा भारत देश,
जग मग है संसार।

सुख दुख भूले प्रेम,
मन में रखे न क्षार।