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ढूँढे मन नादान / प्रेमलता त्रिपाठी

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कहें यहाँ पर अपना किसको, ढूँढे मन नादान।
अंतस पहले अपना झाँके, सत्य करें पहचान।

निंदा से बचना मुश्किल है, पग-पग करें विचार,
पीड़ा को भी पुण्य बना दे, कर्मो से सम्मान।

फूल खिले काँटों की गरिमा, प्रीति हिलाती डाल,
झूम रहा तन पुष्पित होकर, रखता नहीं गुमान।

झुलस रहा जन स्वार्थ अनल में, छीन रहा अधिकार,
आदर्शों के काँधें लगते, दुर्बल नींव मकान।

प्रेम पुकारे मन चेतन हो, जागे तभी विहान,
नीति बिना है जीवन नौका, पाल बिना जलयान।