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बिखरे हुए / आशुतोष सिंह 'साक्षी'
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जीवन के पन्ने सभी बिख़रे हुए।
अदृश्य बेड़ियों से हैं हम जकड़े हुए॥
तोड़कर बेड़ी को हो जाता मुक्त।
मगर अपने लोग ही हैं पकड़े हुए॥
है अपना वजूद दूसरों के हाथ में।
दिल के अरमानों के भी टुकड़े हुए॥
मुस्कुराहटों को चेहरे पर लादे।
हैं सब के चेहरे मगर उतरे हुए॥
हर दिन एक संशय लिए आता।
हैं विश्वास के चमन उजड़े हुए॥