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आदमी / आशुतोष सिंह 'साक्षी'

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दूर दूर तक नहीं आदमी।
बन गये श्मशान आदमी॥

दूब उगाने की कोशिश में।
बन चुका पाषाण आदमी॥

भौतिकता की चकाचौंध में।
भूला अपनी पहचान आदमी॥

हथियारों के पहाड़ पर बैठा।
ओढ़ रहा है कफ़न आदमी॥

सांपों का विष मुँह में लिए।
बनता मेहरबान आदमी॥

लालच ख़ातिर देखो 'साक्षी'।
बेच रहा ईमान आदमी॥
दूर दूर तक नहीं आदमी।
बन गये श्मशान आदमी॥