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मौलिकता / आशुतोष सिंह 'साक्षी'

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जब मनुष्य की मौलिकता
बाह्य लौकिकता में फँस जाती है।

और इस मशीनी युग में
हम भी मशीन बन जाते हैं।

और मनाने लगते हैं हम
मदर्स डे और फादर्स डे।

आज प्रेम दर्शाने के लिए,
मौलिक प्रेम की नहीं,
भौतिक प्रेम की आवश्यकता ज़्यादा है।

क्यों नहीं मिल पा रही है
आँतरिक संतुष्टि हमें।

हम अपने मन के भावों के
ज्वार-भाटा के बीच पिस जाते हैं॥

हाई स्टेटस की चट्टानों से टकराकर,
मन की कोमल लहरें वापिस चली जाती हैं॥

और हम अपने आप को,
ठगा हुआ महसूस करते हैं॥