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बादल अपना नहीं / बीना रानी गुप्ता

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पेड़ो से घिरा है
वह छोटा-सा
बाँस की खपच्चियों से
बना झोपड़ा
जैसे मेहनतकश चिड़िया ने बनाया है
तिनके-तिनके जोड़ घोंसला।
इस झोंपड़े में
खुलती है आँखें
आजादी की अंगड़ाई लिए
क्योंकि यह आकाश उनका है
जिसकी शून्यता में
वे निज शून्यता झाँक लेते है
जिस पर लेटे है पाँव फैलाए
वह सौंधी मिट्टी भी अपनी है।
कभी-कभी सूरज भी अपना होता है
जब अपनी गर्मीली
रूपहली किरणों का ताना बुनता है
उनके ठिठुराते तन पर
उनका चाँद भी तो अपना है
जो ग्रीष्म की रातों में
समेट लेता है
उनकी सभी थकानें।
यह सरसराती हवा भी
उनकी अपनी है
जो शाम के धुंधलके में
जिस्म का रोम-रोम
खोल जाती है
सिर्फ बादल
उनका अपना नहीं है
तभी तो बाढ़ से
घिर जाता है उनका झोपड़ा
फिर कीचड़ से सने
पाँव तलाशते हैं
राहत पाने का कोई उपाय।