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शाम / विजया सती
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भावभीना सूरज जब
रुक-रुक कर चलता है
पहाड़ी के ऊपर से
नीचे को ढलता है
और मेरे आंगन के ठूँठ पर
वही अकेली चिड़िया
मंद-गहरे स्वर में किसी को पुकारती है
तब
घर की अकेली सीढ़ी पर बैठ कर मैं
बड़ा विश्राम पाती हूँ
भूलता-भूलता-सा कुछ याद आ जाता है
याद आते-आते कुछ
भूल जाता है
बीत ही तो जाती है
एक और शाम !