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आग और ढलान / प्रमोद कौंसवाल

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तुम क्या लेकर आए

पानी आसमान अंगोरा

आए हो हिमाचल

कुछ तो लाए होते इन सबको छोड़कर

जवानी के दिनों की स्मृतियों को

जहाँ एक पहाड़ी नौजवान

पढ़ा-लिखा रहा है पहाड़ी बच्चों को

तुम्हारे चश्मे पर हरे रंग की स्मृतियाँ

तरंगों की तरह फैलती नहीं दिखती अगर

तुम इस रंग को भींच लाते

रेखा की मुठ्ठियों से

तुम्हारे घर को

एक रास्ता ऐसा तो जाता ही होगा

जहाँ पुराने पीपल

और लैंटिन की झाड़ियों के सूखे पत्ते गिरे वहाँ से

पुराने किसी पत्थर में बैठकर

तुमने जो भी सोचा

हमसफ़र की तरह

साझा करो

बताओ वह आदमी

जो तुम ख़ुद थे ढलान से गिरते हुए

आए तो आए बचकर कैसे