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रम्य प्रभात / प्रताप नारायण सिंह

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कितना रम्य प्रभात !

नील-गगन को भेद किरण-दल
वसुधा पर उतरा
उत्तल अवतल हरित गात पर
कंचन-कण बिखरा

अंबर से धरणी पर झरता
मंजुल नेह-प्रपात

नवल छुवन से अनुप्राणित हो
विहँसें पुष्प, लता
मृदुल वृन्त संप्रेषित करते
चहुँदिश कोमलता

उच्छृंखल मारुत-झोंके से
लहराता हर पात

विकल भ्रमर का सुमन पटल पर
मधुर मदिर गुंजन
मधु पाने की अभिलाषा का
उत्कट अभिव्यंजन

दिग-दिगंत, मकरन्द-गंध भर
बहे सुवासित वात