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चुप्पी तोड़ो / प्रताप नारायण सिंह

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इससे पहले
स्वीकृति इसको समझा जाए
                     चुप्पी तोड़ो

लोक-लाज वश, फूल मानकर
शूल न अंगीकार करो तुम
पशुता का आभास मिले यदि
भय से मत श्रृंगार करो तुम

इससे पहले
तन पर नीली धारी आए
                चुप्पी तोड़ो

स्वार्थ हेतु कुछ फैलाते जो
घृणा न अंतह में घुलने दो
रोको बढ़कर नरभक्षी के
हिंसक पंजे मत खुलने दो

इससे पहले
लाल रंग से धरा नहाए
               चुप्पी तोड़ो

श्रम की भट्टी में तुम तपकर
स्वेद-रक्त से अर्जित करते
बेच तुम्हें कुछ स्वप्न सुनहरे
लोग उसे हैं छल से हरते

इससे पहले
संकोची मन पूर्ण लुटाए
               चुप्पी तोड़ो

जो भी रात-दिवस चुभता है
भाग्य मानकर, सहना छोड़ो
"कुछ भी बदल नहीं पाएगा"
खुद से तुम यह कहना छोड़ो

इससे पहले
साहस अपनी जीभ कटाए
                  चुप्पी तोड़ो