Last modified on 7 नवम्बर 2019, at 15:57

ये अँधेरे भी रहेंगे / प्रताप नारायण सिंह

Pratap Narayan Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:57, 7 नवम्बर 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ये अँधेरे भी रहेंगे
और उजाले भी रहेंगे

तप्त मरुथल में क्षुधा के
चिलचिलाती धूप होगी
तौलती पौरुष मनुज का
मृगतृषा बहु-रूप होगी

और कुछ लटके हुए
ऊपर निवाले भी रहेंगे

कुछ कहेंगे नित्य ही
बेरंग मौसम की कथाएँ
कुछ उकेरेंगे सदा ही
पतझड़ों की चिर व्यथाएँ

ताप पीकर, कुछ बसंती
गीत वाले भी रहेंगे

कुछ पहनकर नाचते
नरमुंड के गलहार होंगे
क्रन्दनों के शोर में
मदमत्त से हुंकार होंगे

बीच उनके लोग
पक्षी-श्वेत पाले भी रहेंगे

घोष "सच हरिनाम" के संग
कारवाँ बढ़ता रहेगा
इन मसानों का धुआँ
यूँ ही सतत चढ़ता रहेगा

पालने नित सोहरों के
साथ डाले भी रहेंगे