भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बेबसी / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:28, 22 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= अभियान / महेन्द्र भटनागर }} <poem> ...)
आज पड़े प्राणों के लाले !
धरती पर वैषम्य बड़ा है,
हर पथ पर हैवान खड़ा है,
घोर-निराशा के जीवन में आज घुमड़ते बादल काले !
रोटी पर संघर्ष मचा है,
जिससे कोई भी न बचा है,
मानव, मानव से लड़ता है, ले भीषण हथियार निराले !
अब जगती में आग लगेगी,
विद्रोही हुंकार जगेगी,
क्या अब वैभव रह पाएगा जीवित, उन घड़ियों को टाले ?
इतिहास बने बलिदानों का,
उत्सर्ग करो निज प्राणों का,
पीड़ित मानवता की जय हित, ओ कवि,प्रेरक गाने गा ले !
1945