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मेरे देश की माटी / शिवनारायण जौहरी 'विमल'
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यह मिट्टी नहीं मेरा जिगर है ,जान है
मेरा धर्म है,ईमान है ,पहिचान है यारों
मेरे पूर्वजों की शहादत के खून में भींगा
एक मंदिर है इबादत है मजार है यारों
इसके हरेक जर्रे में पूरा देश बसता है
यह विविधता में एकता की शान है यारों
प्रगति के हाथ में शक्ति का परचम
देश की माटी का देवी रूप है यारो
इसके पैर में फोलाद हाथ में बिजली
शीष जनकल्याण का तूफान है यारों
नहीं है सड़क पर पड़ी लाश लावारिस
यह पर्वत शिखर का उद्घोष है यारों
नशे में हू इसका रूप रस गंध पी पीकर
चहता हू यह हावी रहे आखीर तक यारों
यह नशा है सर पर चढ़ कर बोलता है
शक्ति का स्फूर्ति का संचार है यारों।।।।