भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो सभी दर्द / डोरिस कारेवा / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:48, 11 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डोरिस कारेवा |अनुवादक=अनिल जनविज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो सभी दर्द
जो जकड़ते हैं हमें
देर - सवेर

उनमें से चुनते हैं हम
किसी एक को

कि वो हममें ढुलके
और
हमारे प्राण को खंगाले ।

यही
हमारी क़िस्मत है
कि ख़ुद ढुलकाएँ दर्द ।

यही
हमारे अन्तरतम का
मर्म और रूप है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

और लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए
            Doris Kareva
             Of all pains

Of all pains
that seize us,
sooner or later
we choose one
and let it
pour into us
to cast our
spirits. That is
our fate,
the self-casting pain;
that is our innermost
essence and form.

Translated by Doris Kareva and Andres Aule