देहरी पर पहुँच
ठिठक गए पाँव,
ना बिटिया...पीछे न मुड़ना !
रोती माँ
कहती है अँचरा पसारे-
जा अब अपने अँगना
सुख में तेरे कोई कमी न हो
मेरी लक्ष्मी
अपने पीछे भी घर हरा-भरा रखना...
रुके रहे पैर
दहाड़ मार लिपटा भाई
‘कैसे निकल जाऊँ
ये है मेरे बाबुल का अँगना
पापा, आपको छोड़कर
कभी नहीं जाऊँगी’
बचपन की तरह अब
कैसे ये कहेगी दान की बछिया
तुम्हारे आँगन की चिरैया
पीछे भर अँजुरी चावल उछाल
कर गयी देहरी पार ,
नदी-आँख ने देखा
कोने में ढहकर गिरने लगे हैं
गमछे से आँख पोंछते-पोंछते मज़बूत कगार -से पिता ।
लाउडस्पीकर पर बज रहा गाना-
‘रानी बेटी राज करेगी....’