भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छुपा है चाँद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:32, 17 नवम्बर 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


1
खाए हैं घाव
चलो उनको धो लें
दु:ख के पन्ने खोलें
करता है जी
गले से लगकर
जीभर हम रो लें।
2
राह हमारी
ये रोकेंगे सागर
फिर भी मिलना है;
तेरे दिल की
खुशबू बनने को
फूलों -सा खिलना है ।
3
पास जो बैठे
वे मीलों दूर रहे
उनसे क्या शिक़वा !
माना हमसे
कोसों दूर हो तुम
फिर भी पास लगे ।
4
ईर्ष्या का चक्र
सिर पर सवार
बही लोहित धार
कुछ न पाया
बैचैनी सदा मिली
सब कुछ गँवाया ।