भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शपथ / जोशना बनर्जी आडवानी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:39, 17 नवम्बर 2019 का अवतरण
मेरे भीतर एक लड़की है
जो पन्नो से बनी है
तुम्हारे बाहर एक दुनिया है
जो ईश्वर ने रची है
ईश्वर तो ईस्ट इंडिया कंपनी थे
जिसे कुछ नरभक्षी खदेड़ चुके हैं
नरभक्षी तो भीड़ मे धंसा है
जिसने मीठी भाषा का अंगरखा पहनरखा है
अंगरखा के अंदर का हिस्सा
गांधारी रूपी पावनता भी ना देख सकी
पावनता हर सब्ज़ी वाला अपने
तराज़ू के नीचे चिपकाए गली गली फिरता है
तराज़ू अपने हाथ मे लिये देवी
गै़रकानूनी कानून को न्याय दिलाती है
इन सबके बीच
कवि शपथ लेते हैं कि वे अब कभी जन्म नही लेंगे