इच्छामृत्यु / जोशना बनर्जी आडवानी
उसकी दायीं तरफ का हिस्सा फँसादी था
उसके अन्दर प्रश्नो का झाकड़ मलबा था
प्रेम कोई ग्रह क्यो नही या देश क्यो नही?
तितलियो और मकड़ियो मे क्यो नही बनी?
हड्डियो मे कितने वॉट की बिजली है ?
शहरो के पिता तो जंगल है पर माँ कौन है?
अपने प्रेमी से पूछती थी वह हज़ारहां सवाल
उसके प्रेमी के होठो पर जमा हुआ था मौन
भोर ,दिन ,दोपहर ,शाम मे मौन रात मे मौन
उसके दिमाग के सबसे कमज़ोर नस पर
जा चिपका उसके प्रेमी का अक्खड़ मौन
उसने सहेज लिया उस मौन को जैसे
चूड़ीहार सहेजता है काँच की चूड़ियाँ
मुक्केबाज़ सहेजता है अपने दस्ताने
और माँऐं सहेज लेती हैं अपनी विधवा
बेटियो के दुख उनका संसार उनका जीवन
और एक दिन वह खुद ही मौन हो गई
प्रश्नो के बदले मौन, मौन के बदले मृत्यु
प्रेम ऐसे भी ना किया जाये कि जिन्हें हम
माँफ कर दे उन्हें प्रेम ना माँफ कर पाये
प्रेम के विरूद्ध मौन और मौन के विरूद्ध
जीवन ..... इच्छामृत्यु है .... इच्छामृत्यु