Last modified on 21 नवम्बर 2019, at 13:31

तब भी प्यार किया / मदन कश्यप

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:31, 21 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन कश्यप |अनुवादक= |संग्रह=पनसोख...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे बालों में रूसियाँ थीं
तब भी उसने मुझे प्यार किया
मेरी काँखों से आ रही थी पसीने की बू
तब भी उसने मुझे प्यार किया
मेरी साँसों में थी, बस, जीवन-गन्ध
तब भी उसने मुझे प्यार किया

मेरे साधारण कपड़े
किसी साधारण डिटर्जेण्ट से धुले थे
जूतों पर फैली थी सड़क की धूल
मैं पैदल चलकर गया था उसके पास
और उसने मुझे प्यार किया

नज़र के चश्मे का मेरा सस्ता फ्रेम
बेहद पुराना हो गया था
कन्धे पर लटका झोला बदरँग हो गया था
मेरी ज़ेब में था सबसे सस्ता मोबाइल
फिर भी उसने मुझे प्यार किया
एक बाज़ार से गुज़रे
जिसने हमें अपनी दमक में
शामिल करने से इन्कार कर दिया
एक खूबसूरत पार्क में गए
जहाँ मेरे कपड़े और मैले दिखने लगे
हमारे पास खाने का चमकदार पैकेट नहीं था
हमने वहाँ सार्वजनिक नल से पानी पिया
और प्यार किया !

2017