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एक तुम्हारा आना / गरिमा सक्सेना

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केलेण्डर के त्योहारों से मुझको क्या करना है
एक तुम्हारा आना ही लगता होली-दीवाली

रोज प्रतीक्षा करती आँखें सतिया सी द्वारे पर
मन भी वहीं भावरंगों की रंगोली देता धर
बंदनवार बनाकर बाँधू मुस्कानें अधरों की
लड़ियां जगमग तारों की कुछ नेह गुथे गजरों की
शरद चंद्रमा का अमृत तुम लाते हो जीवन में
भर जाता है रास-रंग से जीवन मेरा खाली

हँसी-ठिठोली, रंग-रँगोली मन से मन की बातें
नोक-झोक की फुलझरियाें से सजी-धजी सौगातें
गुझिया, पुए, पुड़ियाँ, लड्डू रसगुल्ले हर्षाते
मेरे दिल का प्यार चिट्ठियाँ बन तुम तक पहुंचाते
तुम चख लेते हो तो भोजन भी प्रसाद हो जाता
छप्पन भोगों जैसी खुशियों से सजती है थाली

मन को कोयल भाती, सावन हो जाता है जीवन
सूखे मन की प्यास बुझाने छाते खुशियों के घन
गीत मिलन वाले सारे मेरे दिल को तब भाते
जब हम दोनों साथ हाथ में हाथ पकड़ कर गाते
गरम चाय की चुस्की के सँग होती ढेरों बातें
होठों की लाली को पाकर खुश हो जाती प्याली