हरे-भरे जीवन के पत्ते
हुये जा रहे पीत
आओ हम सब मिलकर गायें
समाधान के गीत
अँधियारे पर कलम चलाकर
सूरज नया उगायें
उम्मीदों के पंखों को
विस्तृत आकाश थमायें
चलो हाय-तौबा की, डर की
आज गिरायें भीत
बाजारों की धड़कन में हम
फिर से गाँव भरें
पूँजीवादी जड़ें काटकर
फिर समभाव भरें
बँटे हुए आँगन में बोयें
आओ फिर से प्रीत
धूप नहीं लेने देते जो
बरगद के साये
उन्हीं बरगदों की जड़ में हम
जल देते आये
युगों-युगों के इस शोषण की
आओ बदलें रीत