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दो शराबियों की बातचीत का एक टुकड़ा / कुमार विकल

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सुनो अँधेरे में एक औरत हँस रही है

शराब पीने का यह मतलब नहीं कि तुम

सड़क की नियोन बत्तियों को मुग्ध भाव से देखते रहो

और रौशनी के लड़खड़ाते बिम्बों को

पकड़ने की कोशिश में

एक औरत की हँसी को नज़रअंदाज़ कर दो.


मुझे तो यह हँसी—

बहुत ख़तरनाक लग रही है

गोया यह हँसी न हो

एक दूसरी तरह का अँधेरा हो—

अणु-विस्फोट के बाद धरती पे छाए अँधेरे की तरह.


…मुझे कुछ याद आ रहा है

यह अँधेरा—

मैंने पहले भी कहीं देखा है

और यह हँसी—

पहले भी मेरे कानों में कई बार आई है


किन्तु हँसी को अँधेरे में बदलते हुए

मैंने पहली बार देखा है.

सुबह यह औरत—

अपनी स्याह हँसी पर

उजले शब्दों के नक़ाब ओढ़ लेगी

आकाश में सफ़ेद कबूतरों के झुण्ड छोड़ देगी

और एक भिखारी औरत के चेहरे पर

छा रहे अँधेरे को

दुनिया के बदलते मौसम से जोड़ देगी


सुनो !

इस ख़तरनाक हँसी को

समझने की कोशिश करो

शायद यह हँसी

अपने दौर की कुछ फ़ैसलाकुन घटनाओं की दिशाएँ

कुछ समय के लिए मोड़ देगी.