Last modified on 29 नवम्बर 2019, at 17:50

अमर पेड़ / राजेन्द्र देथा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:50, 29 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र देथा |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इन दिनों कविताएँ महज
एक पोथी का शब्द रह गयीं
भावनाओं के साथ
अक्षर कुचल दिए गए है
ठीक हाथी के पैर सी ताकतों ने
हाल ही की बात है
शांति सम्मेलन में
दो बारूद बरामद हुए है।
उन दिनों की तरह
पत्रकारिता,पत्रकारिता नहीं रही
वह चाकू की नोंक पर भेष बदल
पक्षकारिता बन गयी है।
लेकिन क्या मौलिकता कभी दबेगी?
नहीं, कभी नहीं!

सुनो!
तर्कहीन ताकतों
तुम उस अमर वटवृक्ष को
कभी काट न पाओगे
जो तुम्हारे द्वारा
अधिकार छीनने पर भी
अटल ठूंठ बना फिरता है।